श्लेष अलंकार किसे कहते हैं – परिभाषा,उदाहरण | shlesh alankar in hindi | श्लेष अलंकार के उदाहरण | hindi0point
श्लेष अलंकार के उदाहरण : shlesh alankaar ke udaaharan :-
1.रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है :
1.पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए।
2.पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है. रहीम कहते हैं कि चमक के बिना मोती का कोई मूल्य नहीं ।
3.पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष के अंतर्गत आएगा ।
श्लेष अलंकार के भेद : shlesh alankaar ke bhed :-
प्रकृति के अनुसार श्लेष अलंकार को दो भागों में विभाजित किया गया है।
1. शब्द श्लेष ; shabd shlesh
जब एक ही शब्द का कई बार प्रयोग हो और दोनों के अर्थ में भिन्नता हो यो वहाँ शब्द श्लेष होता है।
उदाहरण:-
खुले बाल, खिले बाल
चंदन को टीको लाल ।
यहां पर बाल शब्द दो बार आया है जिनमे से पहले का अर्थ है खुले हुए सिर के बाल और दूसरे का अर्थ है बालक । अर्थात यहां पर शब्द श्लेष अलंकार है ।
2. अर्थ श्लेष
जहाँ पर कोई शब्द एक बार आया हो परंतु उसके कई अर्थ निकलकर आ रहे हों वहां पर अर्थ श्लेष अलंकार की उपस्थिति होती है।
उदाहरण :-
प्रियतम बतला दो लाल मेरा कहाँ है ? यहाँ पर लाल शब्द के दो अर्थ हैं। पहला पुत्र और दूसरा- रत्न । अतः यहाँ पर अनेकार्थ होने के कारण अर्थ श्लेष है।
श्लेष अलंकार के उदाहरण shlesh alankaar ke udaaharan :-
1. चाहनहार सुवर्ण के, कविजन और सुनार
2. पी तुम्हारी मुख बास तरंग आज बौरे भौरे सहकार ।
3.खुले बाल, खिले बाल
चंदन को टीको लाल ।
4. या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोई।
ज्यों-ज्यों बूडे स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होई।
5. कहाँ उच्च वह शिखर काल का
जिस पर अभी विलय था।
6.रावन सिर सरोज बनचारी |
चलि रघुवीर सिलीमुख धारी ।
7. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय ।
बारे उजियारे करै, बढ़े अँधेरो होय ।
8. प्रियतम बतला दो लाल मेरा कहाँ है ?
9. जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति-सी छाई।
दुर्दिन में आँसू बनकर आज बरसने आई ॥
10. रंचहि सो ऊंचो चढ़े, रंचहि सो घटि जाए
तुलकोटि खल दुहुन की, एकै रीति लखाय ।
(11) बौर-भौंर के प्रसंग में मस्त होना
आम के प्रसंग में मंजरी निकलना
(12) जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय ।
बारे उजियारे करै, बढ़े अँधेरो होय।।
‘बारे’ का अर्थ- जलाना और बचपन
‘बढ़े’ का अर्थ-बुझने पर और बड़े होने पर
(13) जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति-सी छाई।
दुर्दिन में आँसू बनकर आज बरसने आई ।।
‘घनीभूत’ के अर्थ – इकट्ठी और मेघ बनी हुई
दुर्दिन के अर्थ-बुरे दिन और मेघाच्छन्न दिन।
(14) रावन सिर सरोज बनचारी चलि रघुवीर सिलीमुख धारी। सिलीमुख के अर्थ-बाण, भ्रमर
(14) सुबरन को ढूँढ़त फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर
‘सुबरन’ के अर्थ -सुन्दर वर्ण, सुन्दर स्त्री और सोना।
(16) रंचहि सो ऊँचो चढ़े, रंचहि सो घटि जाय।
तुलाकोटि खल दुहुन की, एकै रीति लखाय।।
(17) या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोई।
ज्यों-ज्यों बूडे स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होई ।
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